इस वक्त, जब तुम अपने गर्भ में जीवन पाल रही हो — या अपनी बाहों में उसे थामे हुए हो — तुम्हारे मन में कई भावनाएं उमड़ रही होंगी।
खुशी, हां — वो भी इतनी गहरी कि दिल जैसे फट पड़े। लेकिन उसके साथ-साथ थकावट, अनिश्चितता और शायद डर भी।
मैं आज तुम्हें ये चिट्ठी एक मां के रूप में लिख रही हूं — जिसने ये सफर तय किया है — बस ये कहने के लिए कि:
तुम अकेली नहीं हो।
मां बनना अक्सर एक सुखद सपने की तरह दिखाया जाता है, पर सच्चाई ये है कि ये सुख और दर्द से बुना एक अनोखा सफर है।
थक जाना ठीक है। उलझन में पड़ना ठीक है। वो रातें जब तुम चुपचाप रोने लगो, और वो दिन जब खुद से पूछो, “क्या मैं ये कर भी पाऊंगी?” — ये सब बिल्कुल सामान्य है।
मुझे याद है — मेरी पहली रात जब मेरा बच्चा लगातार रो रहा था। मेरी देह दुख रही थी, नींद आंखों से कोसों दूर थी, और मन बिल्कुल थका हुआ। रात के तीन बजे, अंधेरे में, मैं भी फर्श पर बैठ कर अपने बच्चे के साथ रो रही थी।
उस पल लगा, जैसे मैं मातृत्व में असफल हो रही हूं।
लेकिन नहीं — मैं टूटी हुई थी, नहीं हार रही थी।
जो मां हर पल अपना सब कुछ दे रही है — वही सच्ची मां है।
हम पर अक्सर परफेक्ट दिखने का दबाव होता है — शांत, मुस्कुराती, मजबूत।
पर मां होना अजेय होना नहीं होता।
मां होना वो साहस है, जिसमें थक कर भी प्यार किया जाता है।
हमारी नानी-दादी, और मांओं ने बहुत कुछ सहा — बिना कहे।
उनके पास ये कहने की आज़ादी नहीं थी — “मैं थक गई हूं”, या “मुझे मदद चाहिए।”
उनकी खामोशी एक विरासत बन गई — जो अनकहे दर्द की तरह अगली पीढ़ी को सौंप दी गई।
लेकिन मेरी बच्ची — तुम ये चक्र तोड़ सकती हो।
हर बार जब तुम कहती हो — “मैं थकी हूं,” या “क्या कोई मेरी मदद कर सकता है?” —
तुम अपने लिए नहीं, अपनी मां, नानी, और उन अनगिनत महिलाओं के लिए भी बोल रही होती हो, जिन्हें कभी बोलने की इजाज़त नहीं मिली।
भारत में सदियों से, हर राज्य, हर गांव में मां बनने वाली स्त्री को खास महत्व दिया गया है।
उसे क्वीन की तरह संभाला गया — अjwain laddoo, panjiri, jeera का पानी, गर्म तेल से मालिश, पेट बांधना — ये सब उस प्यार की निशानी हैं जो पीढ़ियों ने हमें सौंपा है।
ये old wives’ tales नहीं हैं।
ये ममत्व में लिपटी परंपराएं हैं।
पर आज, आधुनिक जीवनशैली और छोटे परिवारों के कारण वो देखभाल कहीं खो रही है।
हमारे पास वो नानी-दादी अब साथ नहीं होतीं, जो ये सब सिखाएं या करें।
इसीलिए मैं ये चिट्ठी लिख रही हूं —
ताकि तुम याद रखो कि तुम अकेली नहीं हो।
तुम उस मां-बहनों की परंपरा से जुड़ी हो जो सदियों पुरानी है।
बच्चे की देखभाल करते हुए, मां खुद की देखभाल करना भूल जाती है।
पर तुम — तुमने जीवन रचा है।
तुम योद्धा भी हो, और आश्रय भी।
अब तुम्हारे शरीर को फिर से संवरने का समय चाहिए।
आराम करो।
मदद स्वीकार करो।
पौष्टिक खाना खाओ।
रोना है तो रो लो।
हंस सको तो ज़रूर हंसो।
एक तंदरुस्त, खुश मां — अपने बच्चे के लिए सबसे बड़ा तोहफा होती है।
मैंने नुस्खा इसलिए शुरू किया क्योंकि मुझे लगा — आधुनिक जीवन में मां को मिलने वाला वो “खास देखभाल” कहीं खो रही है।
मैं चाहती थी कि हर मां को वही प्यार और परंपरा फिर से मिले — आधुनिक रूप में, लेकिन उसी सच्चाई और गहराई के साथ।
हर लड्डू, हर तेल, हर काढ़ा — एक संदेश है:
बेटा, हमने तेरे लिए ये सब संभाल कर रखा है।”
प्यार और आशीर्वाद के साथ,
अल्पना
(एक मां, और Nuskha की संस्थापक — जो दिल से तुम्हें ये चिट्ठी लिख रही है।)